Saturday, 21 January 2017

Winter Poetry

ठिठुर रहा है बदन साँस थम सी गई है.
आज सर्दी बहुत है शायरी जम सी गई है....॥



 उफ़ ये सर्द हवाएँ...बिखरे पत्ते...और तन्हाई,
ए-जनवरी तू सब कुछ ले आयी है, सिवाय उसके...!!!


उँगलियाँ ही सहला रही हैं रिश्तों को अब,
ज़ुबाँ को आजकल बड़ी तक़लीफ़ होती है...!!

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