मयस्सर डोर से फिर एक मोती झड़ रहा है ,
तारीखों के जीने से दिसम्बर उतर रहा है |
कुछ चेहरे घटे , चंद यादे जुड़ी गए वक़्त में,
उम्र का पंछी नित दूर और दूर उड़ रहा है |...
गुनगुनी धूप और ठिठुरी राते जाड़ो की,
गुजरे लम्हों पर झिना झिना पर्दा गिर रहा है।
फिर दिसम्बर गुजर रहा है
मिट्टी का जिस्म एक दिन मिट्टी में मिलेगा ,
मिट्टी का पुतला किस बात पर अकड़ रहा है |
जायका लिया नही और फिसल रही जिन्दगी ,
आसमां समेटता वक़्त बादल बन उड़ रहा है |.........फिर दिसम्बर गुज़र रहा है
तारीखों के जीने से दिसम्बर उतर रहा है |
कुछ चेहरे घटे , चंद यादे जुड़ी गए वक़्त में,
उम्र का पंछी नित दूर और दूर उड़ रहा है |...
गुनगुनी धूप और ठिठुरी राते जाड़ो की,
गुजरे लम्हों पर झिना झिना पर्दा गिर रहा है।
फिर दिसम्बर गुजर रहा है
मिट्टी का जिस्म एक दिन मिट्टी में मिलेगा ,
मिट्टी का पुतला किस बात पर अकड़ रहा है |
जायका लिया नही और फिसल रही जिन्दगी ,
आसमां समेटता वक़्त बादल बन उड़ रहा है |.........फिर दिसम्बर गुज़र रहा है
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