Saturday, 14 January 2017

तू किस अधिकार से चरखे से 
फोटो जोड़ आया था?
वो बैरिस्टर बड़े घर का 
सभी कुछ छोड़ आया था।

कभी कुर्ता तेरा मैला, 
और अब है, सूट लाखों का,
वो धोती बांध कर; रूह-ए-वतन 
झनझोड़ आया था।

गरीबों के लहू से 
हाथ रंगे हैं तेरे, अब तक,
अहिंसक रहके वो 
फौज-ए-फिरंगी मोड़ आया था।

तेरी सियासत की रोटी 
सिकती है दंगे भड़कने पर,
वो दंगे रोकने को 
रोटी-पानी छोड़ आया था।

तेरी बातों से सदियों के 
बने रिश्ते बिखरते हैं,
वो गंगा और जमुना के 
किनारे जोड़ आया था।

अकड़ की इन्तेहां देखो  
के नपवाता है छाती तक,
वो दुर्बल-सा, गुरूर-ए-तख्त-ए-शाही 
तोड़ आया था।

💐💐💐

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