Wednesday, 15 February 2017

प्रेरणादायक कहानी

एक राजा था जिसे राज भोगते काफी समय हो गया था बाल भी सफ़ेद होने लगे थे । 
एक दिन उसने अपने दरबार मे उत्सव रखा । 
उत्सव मे मुजरा करने वाली और अपने गुरु को बुलाया । 
दूर देश के राजाओं को भी । 
राजा ने कुछ मुद्राए अपने गुरु को दी जो बात मुजरा करने वाली की अच्छी लगेगी वह मुद्रा गुरु देगा। 

सारी रात मुजरा चलता रहा । सुबह होने वाली थीं, मुज़रा करने वाली ने देखा मेरा तबले वाला ऊँघ रहा है उसको जगाने के लियें मुज़रा करने वाली ने एक दोहा पढ़ा , 

*"बहु बीती, थोड़ी रही, पल पल गयी बिहाई ।*
*एक पलक के कारने, ना कलंक लग जाए।"*

अब इस दोहे का अलग अलग व्यक्तियों ने अलग अलग अपने अपने अनुरूप अर्थ निकाला ।

*तबले वाला सतर्क हो  बजाने लगा।*
*जब ये बात गुरु ने सुनी,  गुरु ने सारी मोहरे उस मुज़रा करने वाली को दे दी* 


वही दोहा उसने फिर पढ़ा तो राजा के लड़की ने अपना नवलखा हार दे दिया । 

उसने फिर वही दोहा दोहराया तो राजा के लड़के ने अपना मुकट उतारकर दे दिया । 

वही दोहा दोहराने लगी राजा ने कहा बस कर एक दोहे से तुमने वेश्या होकर सबको लूट लिया है । 

जब ये बात राजा के गुरु ने सुनी गुरु के नेत्रो मे जल आ गया और कहने लगा, "  राजा इसको तू वेश्या न कह, ये मेरी गुरू है। 
*इसने मुझें मत दी है कि मै सारी उम्र जंगलो मे भक्ति करता रहा और आखरी समय मे मुज़रा देखने आ गया हूँ। भाई मै तो चला।*

*राजा की लड़की ने कहा, " आप मेरी शादी नहीं कर रहे थे,  आज मैंने आपके महावत के साथ भागकर अपना जीवन बर्बाद कर लेना था । इसनें मुझे सुमति दी है कि कभी तो तेरी शादी होगी । क्यों अपने पिता को कलंकित करती है ? "*

*राजा के लड़के ने कहा, " आप मुझे राज नहीं दे रहे थे । मैंने आपके सिपाहियो से मिलकर आपका क़त्ल करवा देना था । इसने समझाया है कि आखिर राज तो तुम्हे ही मिलना है । क्यों अपने पिता के खून का इलज़ाम अपने सर लेते हो?*

जब ये बातें राजा ने सुनी तो राजा ने सोचा क्यों न मै अभी राजतिलक कर दूँ , गुरु भी मौजूद है । 
उसी समय राजतिलक कर दिया और लड़की से कहा बेटा, " मैं आपकी शादी जल्दी कर दूँगा। "

*मुज़रा करने वाली कहती है , " मेरे एक दोहे से इतने लोग सुधर गए, मै तो ना सुधरी। आज से मै अपना धंधा बंद करती हूँ।*
*हे प्रभु! आज से मै भी तेरा नाम सुमिरन करुँगी ।*

समझ आने की बात है, दुनिया बदलते देर नहीं लगती। एक दोहे की दो लाईनों में इतना सामर्थ्य जुट सकता है। थोड़ा धैर्य रखने की ज़रूरत है। *।।हरि ॐ।।*
"प्रशंसा" से "पिंघलना" मत,
"आलोचना" से "उबलना" मत,
निस्वार्थ भाव से कर्म कर
क्योंकि इस "धरा" का, इस "धरा" पर,
सब "धरा रह जाऐगा
"मनुष्य कितना भी गोरा क्यों ना हो
परंतु उसकी परछाई सदैव काली होती है !
"मैं सर्वश्रेष्ठ हूँ" यह आत्मविश्वास है
लेकिन
"सिर्फ मैं ही सर्वश्रेष्ठ हूँ" यह अहंकार है..
अहंकार से जिनका, मन मैला है ,
करोड़ों की भीड़ में भी, वह अकेला है !
         👏🏻👏🏻🙏🏻

No comments:

Post a Comment